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Shiv Tandav Lyrics in Hindi & English With Meaning |Shiv Tandav Stotram – शिव तांडव स्तोत्रम् 

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Shiv Tandav Lyrics Introduction

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शिव तांडव स्तोत्र गीत | रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र

शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव को समर्पित एक भक्ति स्तोत्र है। इस भजन के लेखक रावण थे, जो एक महान शासक थे, जिन्होंने दक्षिण एशिया में एक महान राज्य पर शासन किया था। शिव तांडव स्तोत्र की गणना शिव महिमा स्तोत्र के अंतर्गत की जाती है। इस लेख में हम आपको इस स्तोत्र के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

Shiv Tandav  Lyrics

शिव तांडव स्तोत्र के बोल बड़े ही भव्य और अर्थपूर्ण हैं। इस स्तोत्र में भगवान शिव को विभिन्न नामों से समर्थन मिलता है, जैसे नटराज, महादेव, शंकर, त्रिलोचन, रुद्र और नीलकंठ। इस स्तोत्र में शिव की महिमा और उनकी शक्ति का वर्णन है।

Shiv Tandav Stotra Lyrics | Shiva Tandav Stotra composed by Ravana

Shiv Tandav Stotra is a devotional hymn dedicated to Lord Shiva. The author of this hymn was Ravana, a legendary ruler who ruled over a great kingdom in South Asia. Shiv Tandav Stotra is counted under Shiv Mahima Stotra. In this article, we will give you detailed information about this stotra.

The lyrics of Shiv Tandav Stotra are very grand and meaningful. Lord Shiva is supported by various names in this stotra, such as Nataraja, Mahadeva, Shankara, Trilochana, Rudra and Neelkantha. This stotra describes the glory of Shiva and his power.

Shiv Tandav Lyrics in Hindi – शिव तांडव स्तोत्रम् 

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥ १ ॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
-विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥ २ ॥

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ ३ ॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ ४ ॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥ ५ ॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
-निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥ ६ ॥

करालफालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाधरीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥ ७ ॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबन्धुकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः ॥ ८ ॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
-विलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥ ९ ॥

अगर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥ १० ॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
-द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालफालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥ ११ ॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्-
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥ १२ ॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललाटफाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् सदा सुखी भवाम्यहम् ॥ १३ ॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसन्ततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥ १४ ॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥ १५ ॥

इति श्री शिव तांडव स्तोत्रम् ||

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Shiva Tandava Lyrics in English

Jatatavigalajjala pravahapavitasthale
Galeavalambya lambitam bhujangatungamalikam |
Damad damad damaddama ninadavadamarvayam
Chakara chandtandavam tanotu nah shivah shivam ||1||

Jata kata hasambhrama bhramanilimpanirjhari
Vilolavichivalarai virajamanamurdhani |
Dhagadhagadhagajjva lalalata pattapavake
Kishora chandrashekhare ratih pratikshanam mama ||2||

Dharadharendrana ndinivilasabandhubandhura
Sphuradigantasantati pramodamanamanase |
Krupakatakshadhorani nirudhadurdharapadi
Kvachidigambare manovinodametuvastuni ||3||

Jata bhujan gapingala sphuratphanamaniprabha
Kadambakunkuma dravapralipta digvadhumukhe |
Madandha sindhu rasphuratvagutariyamedure
Mano vinodamadbhutam bibhartu bhutabhartari ||4||

Sahasra lochana prabhritya sheshalekhashekhara
Prasuna dhulidhorani vidhusaranghripithabhuh |
Bhujangaraja malaya nibaddhajatajutaka
Shriyai chiraya jayatam chakora bandhushekharah ||5||

Lalata chatvarajvaladhanajnjayasphulingabha
Nipitapajnchasayakam namannilimpanayakam |
Sudha mayukha lekhaya virajamanashekharam
Maha kapali sampade shirojatalamastu nah ||6||

Karala bhala pattikadhagaddhagaddhagajjvala
Ddhanajnjaya hutikruta prachandapajnchasayake |
Dharadharendra nandini kuchagrachitrapatraka
Prakalpanaikashilpini trilochane ratirmama ||7||

Navina megha mandali niruddhadurdharasphurat
Kuhu nishithinitamah prabandhabaddhakandharah |
Nilimpanirjhari dharastanotu krutti sindhurah
Kalanidhanabandhurah shriyam jagaddhurandharah ||8||

Praphulla nila pankaja prapajnchakalimchatha
Vdambi kanthakandali raruchi prabaddhakandharam |
Smarachchidam purachchhidam bhavachchidam makhachchidam
Gajachchidandhakachidam tamamtakachchidam bhaje ||9||

Akharvagarvasarvamangala kalakadambamajnjari
Rasapravaha madhuri vijrumbhana madhuvratam |
Smarantakam purantakam bhavantakam makhantakam
Gajantakandhakantakam tamantakantakam bhaje ||10||

Jayatvadabhravibhrama bhramadbhujangamasafur
Dhigdhigdhi nirgamatkarala bhaal havyavat |
Dhimiddhimiddhimidhva nanmrudangatungamangala
Dhvanikramapravartita prachanda tandavah shivah ||11||

Drushadvichitratalpayor bhujanga mauktikasrajor
Garishtharatnaloshthayoh suhrudvipakshapakshayoh |
Trushnaravindachakshushoh prajamahimahendrayoh
Sama pravartayanmanah kada sadashivam bhajamyaham ||12||

Kada nilimpanirjhari nikujnjakotare vasanh
Vimuktadurmatih sada shirah sthamajnjalim vahanh |
Vimuktalolalochano lalamabhalalagnakah
Shiveti mantramuchcharan sada sukhi bhavamyaham ||13||

Imam hi nityameva muktamuttamottamam stavam
Pathansmaran bruvannaro vishuddhimeti santatam |
Hare gurau subhaktimashu yati nanyatha gatim
Vimohanam hi dehinam sushankarasya chintanam ||14||

Puja vasanasamaye dashavaktragitam
Yah shambhupujanaparam pathati pradoshhe |
Tasya sthiram rathagajendraturangayuktam
Lakshmim sadaiva sumukhim pradadati shambhuh ||15||

Ithi Sri Shiva Tandava Stotram ||

शिव तांडव स्तोत्र – Hindi Lyrics and Meaning

जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥

उनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है,
और उनके गले में सांप है जो हार की तरह लटका है,
और डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रही है,
भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें।

 

जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥

मेरी शिव में गहरी रुचि है,
जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है,
जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं?
जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है,
और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं।

 

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे,
अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में मौजूद हैं,
जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं,
जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है,
और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं।

 

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥

मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं,
उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है,
ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है,
जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है।

 

सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥

भगवान शिव हमें संपन्नता दें,
जिनका मुकुट चंद्रमा है,
जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं,
जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है,
जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है।
 

ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें,
जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था,
जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं,
जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं।



करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥

मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं,
जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया,
उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्… की घ्वनि से जलती है,
वे ही एकमात्र कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर,
सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।

 

नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

भगवान शिव हमें संपन्नता दें,
वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं,
जिनकी शोभा चंद्रमा है,
जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है,
जिनकी गर्दन गला बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है।

 

प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है,
पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ,
जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है।
जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,
जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,
जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,
और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।

 

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं
शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण,
जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,
जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,
जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,
और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।

 

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड
तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है,
जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण,
गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई।

 

दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता,
जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि,
घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति,
सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति,
सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति?

 

कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुए,
अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए,
अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए,
महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित?

 

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥

इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है,
वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है।
इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है।
बस शिव का विचार ही भ्रम को दूर कर देता है।

Shiv Tandav Lyrics Song On Youtube

रावण रचित शिव तांडव स्तोत्रम् | Original with easy lyrics | #omnamahshivay #shivtandav

FAQ On Shiv Tandav Lyrics

शिव तांडव स्त्रोत सुनने से क्या होता है?

इस पाठ को करने से व्यक्ति के चेहरे पर रौनक आती है, आत्मविश्वास मजबूत होता है। धार्मिक मान्यता है कि शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने से हर मनोकामना पूरी होती है। महादेव नृत्य, चित्रकला, लेखन, योग, ध्यान, समाधि आदि सिद्धियों के दाता हैं।

शिव तांडव में कितने श्लोक हैं?

शिव तांडव स्तोत्र रावण द्वारा भगवान शिव के लिए गाया गया एक स्तोत्र है, जिसमें 17 छंद हैं।

भगवान शिव कितने तरह से तांडव करते हैं?

भगवान भोलेनाथ दो तरह से तांडव नृत्य करते हैं। पहले जब वह गुस्से में होता है तो बिना डमरू के ही तांडव नृत्य करता है। लेकिन दूसरा तांडव नृत्य करते समय जब उन्होंने डमरू भी बजाया तो प्रकृति में आनंद की वर्षा हुई। ऐसे समय में शिव परम आनंद से भरे रहते हैं।

शिव तांडव कौन लिखा था?

धार्मिक मान्यता के अनुसार जो भी व्यक्ति शिवतांडव स्तोत्र के माध्यम से सच्चे मन से भगवान शिव की स्तुति करता है, उसे कभी भी धन की कमी नहीं होती है। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है। इस स्तोत्र की रचना दशानन ने की है।

रावण ने शिव तांडव क्यों गाया था?

पौराणिक मान्यता कहती है कि रावण ने अपने देवता महादेव की स्तुति में शिव तांडव स्तोत्र की रचना की थी। मान्यता है कि जब रावण कैलाश लेकर चलने लगा तो भगवान शिव ने कैलाश को अपने अंगूठे से दबा लिया। जिससे कैलाश वहीं रह गया और रावण को दफना दिया गया। तब भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण द्वारा की गई स्तुति को शिव तांडव स्तोत्र कहा गया।

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