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Aditya Hridaya Stotra Lyrics Video On Youtube
Aditya Hridaya Stotra Lyrics in Hindi
आदित्यहृदय स्तोत्र
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥
सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥
पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥
हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥
तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥
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आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी अनुवाद सहित | Shri Aditya Hridaya Stotra
।। अथ आदित्य हृदय स्तोत्रम ।।
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥ 01
उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया।
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवान् ऋषिः॥ 02
यह देख भगवान् अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।
राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि॥ 03
सबके ह्रदय में रमन करने वाले महाबाहो राम! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो! वत्स! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे ।
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
जयावहं जपेन्नित्यम् अक्षय्यं परमं शिवम्॥ 04
इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आदित्यहृदय’ । यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय कि प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
चिन्ताशोकप्रशमनम् आयुर्वर्धनमुत्तमम्॥ 05
सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।
रश्मिमंतं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्॥ 06
भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं । ये नित्य उदय होने वाले, देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान नाम से प्रसिद्द, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं । तुम इनका रश्मिमंते नमः, समुद्यन्ते नमः, देवासुरनमस्कृताये नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराये नमः इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो।
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः॥ 07
संपूर्ण देवता इन्ही के स्वरुप हैं । ये तेज़ की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं । ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित समस्त लोकों का पालन करने वाले हैं ।
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः॥ 08
भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, महेंद्र, कुबेर, काल, यम, सोम एवं वरुण आदि में भी प्रचलित हैं।
पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः।
वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥ 09
ये ही ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर , वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के पुंज हैं ।
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः॥ 10
इनके नाम हैं आदित्य(अदितिपुत्र), सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य(सर्वव्यापक), खग, पूषा(पोषण करने वाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश्य, भानु(प्रकाशक), हिरण्यरेता(ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज), दिवाकर(रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले),
हरिदश्वः सहस्रार्चि: सप्तसप्ति-मरीचिमान।
तिमिरोन्मन्थन: शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान॥ 11
हरिदश्व, सहस्रार्चि (हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति(सात घोड़ों वाले), मरीचिमान(किरणों से सुशोभित), तिमिरोमंथन(अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक(ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान,
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः।
अग्निगर्भोsदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशान:॥ 12
हिरण्यगर्भ(ब्रह्मा), शिशिर(स्वभाव से ही सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ(अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन(शीत का नाश करने वाले),
व्योम नाथस्तमोभेदी ऋग्य जुस्सामपारगः।
धनवृष्टिरपाम मित्रो विंध्यवीथिप्लवंगम:॥ 13
व्योमनाथ(आकाश के स्वामी), तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विंध्यवीथिप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले),
आतपी मंडली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः।
कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भव:॥ 14
आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल(भूरे रंग वाले), सर्वतापन(सबको ताप देने वाले), कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण),
नक्षत्रग्रहताराणा-मधिपो विश्वभावनः।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोस्तुते॥ 15
नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन(जगत कि रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं। इन सभी नामो से प्रसिद्द सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है।
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रए नमः।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः॥ 16
पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है । ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाए नमो नमः।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥ 17
आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य! आपको बारम्बार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्द हैं, आपको नमस्कार है।
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः।
नमः पद्मप्रबोधाय मार्तण्डाय नमो नमः॥ 18
उग्र, वीर, और सारंग सूर्यदेव को नमस्कार है । कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है।
ब्रह्मेशानाच्युतेषाय सूर्यायादित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः॥ 19
आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है । सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषाम् पतये नमः॥ 20
आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं । आपका स्वरुप अप्रमेय है । आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।
तप्तचामिकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे।
नमस्तमोsभिनिघ्नाये रुचये लोकसाक्षिणे॥ 21
आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरी और विश्वकर्मा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।
नाशयत्येष वै भूतम तदेव सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥ 22
रघुनन्दन! ये भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं । ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं।
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
एष एवाग्निहोत्रम् च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम॥ 23
ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।
वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनाम फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः॥ 24
वेदों, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।
एन मापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
कीर्तयन पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव॥ 25
राघव! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।
पूज्यस्वैन-मेकाग्रे देवदेवम जगत्पतिम।
एतत त्रिगुणितम् जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि॥ 26
इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर कि पूजा करो । इस आदित्यहृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।
अस्मिन क्षणे महाबाहो रावणम् तवं वधिष्यसि।
एवमुक्त्वा तदाsगस्त्यो जगाम च यथागतम्॥ 27
महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे। यह कहकर अगस्त्यजी जैसे आये थे वैसे ही चले गए।
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोsभवत्तदा।
धारयामास सुप्रितो राघवः प्रयतात्मवान ॥ 28
उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया।
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परम हर्षमवाप्तवान्।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान॥ 29
और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते हुए इसका तीन बार जप किया । इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ । फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर
रावणम प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत।
सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोsभवत्॥ 30
रावण की और देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढे। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।
अथ रवि-रवद-न्निरिक्ष्य रामम। मुदितमनाः परमम् प्रहृष्यमाण:।
आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी में | Aditya Hridaya Stotra Paath
उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया। 01
यह देख भगवान् अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले। 02
सबके ह्रदय में रमन करने वाले महाबाहो राम! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो! वत्स! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे । 03
इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आदित्यहृदय’ । यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय कि प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है। 04
सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है। 05
भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं । ये नित्य उदय होने वाले, देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान नाम से प्रसिद्द, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं । तुम इनका रश्मिमंते नमः, समुद्यन्ते नमः, देवासुरनमस्कृताये नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराये नमः इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो। 06
संपूर्ण देवता इन्ही के स्वरुप हैं । ये तेज़ की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं । ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित समस्त लोकों का पालन करने वाले हैं । 07
भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, महेंद्र, कुबेर, काल, यम, सोम एवं वरुण आदि में भी प्रचलित हैं। 08
ये ही ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर , वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के पुंज हैं । 09
इनके नाम हैं आदित्य(अदितिपुत्र), सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य(सर्वव्यापक), खग, पूषा(पोषण करने वाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश्य, भानु(प्रकाशक), हिरण्यरेता(ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज), दिवाकर(रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), 10
हरिदश्व, सहस्रार्चि (हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति(सात घोड़ों वाले), मरीचिमान(किरणों से सुशोभित), तिमिरोमंथन(अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक(ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान, 11
हिरण्यगर्भ(ब्रह्मा), शिशिर(स्वभाव से ही सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ(अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन(शीत का नाश करने वाले), 12
व्योमनाथ(आकाश के स्वामी), तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विंध्यवीथिप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले), 13
आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल(भूरे रंग वाले), सर्वतापन(सबको ताप देने वाले), कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण),14
नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन(जगत कि रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं। इन सभी नामो से प्रसिद्द सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है। 15
पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है । ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है। 16
आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य! आपको बारम्बार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्द हैं, आपको नमस्कार है। 17
उग्र, वीर, और सारंग सूर्यदेव को नमस्कार है । कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है। 18
आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है । सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। 19
आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं । आपका स्वरुप अप्रमेय है । आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है। 20
आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरी और विश्वकर्मा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है। 21
रघुनन्दन! ये भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं । ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं।22
ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।23
वेदों, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं। 34
राघव! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता। 25
इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर कि पूजा करो । इस आदित्यहृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे। 26
महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे। यह कहकर अगस्त्यजी जैसे आये थे वैसे ही चले गए। 27
उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया। 28
और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते हुए इसका तीन बार जप किया । इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ । फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर । 29
रावण की और देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढे। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया। 30
उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशाचर राज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा – ‘रघुनन्दन! अब जल्दी करो’ । इस प्रकार भगवान् सूर्य कि प्रशंसा में कहा गया और वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में वर्णित यह आदित्य हृदयम मंत्र संपन्न होता है। 31
Aditya Hrudayam Lyrics in English
Tato yuddhapariśrāntaṃ samare chintayā sthitam
rāvaṇaṃ jāgrato dṛṣṭvā yuddhāya samupasthitam || 1
Meaning: Beholding Sri Rama, Rama being exhausted in the battle was absorbed in the deep thought in the battlefield by seeing Ravana in-front of Him, having appeared to fight, fully prepared for the war.
Daivataiśca samāgamya draṣṭumabhyāgato raṇam
upāgamyābravīdrāmamagastyo bhagavān ṛṣiḥ || 2
Meaning: The great and glorious Rishi, Sage Agastya, who had come in the company of Devas (Gods) to witness the encounter now spoke to Rama as follows:
Rāma rāma mahābāho śṛṇu guhyaṃ sanātanam
yena sarvānarīn vatsa samare vijayiṣyasi || 3
Meaning: O Rama, O Rama, O with mighty Arms; Listen carefully to this eternal secret by which, ‘O my child, you will be victorious against all enemies in the battle,
Adityahṛdayaṃ puṇyaṃ sarvaśatruvināśanam
jayāvahaṃ japennityam akṣayyaṃ paramaṃ śivam || 4
Meaning: Aditya Hridayam (Hymns of the Sun God), which is Sacred and Destroyer of all Enemies brings Victory if recited daily, you will be victorious and gain undecaying auspiciousness of the highest kind.
Sarvamaṅgalamāṅgalyaṃ sarvapāpapraṇāśanam
cintāśokapraśamanam āyurvardhanamuttamam || 5
Meaning: He is the bestower of all-round Welfare (Sarva Mangala Mangalyam), and the remover of all Sins (Sarva Papa Pranashanam), He heals the worries and griefs (Chinta Shoka Prashamanam) and increases the Life Span (Ayur Vardhanam Uttamam)
Raśmimaṃtaṃ samudyantaṃ devāsuranamaskṛtam
pūjayasva vivasvantaṃ bhāskaraṃ bhuvaneśvaram || 6
Meaning: The Sun is filled with Rays (Rashmimanta) and rises equally for all, spreading His illumination (Samudyanta); He is reverentially saluted by both the Devas and the Asuras (Deva Asura Namaskritam), The Sun is to be worshipped who shines forth (Vivasvanta) creating His own Light (Bhaskara), and who is the Lord of the Universe (Bhuvaneshwaram),
Sarvadevātmako hyeṣa tejasvī raśmibhāvanaḥ
eṣa devāsuragaṇām̐llokān pāti gabhastibhiḥ || 7
Meaning: He carries the essence of splendor of all the Devas (Sarva Deva Atmaka), and is filled with Fiery Energy (Tejasvi) which He manifests in His Rays (Rashmi Bhavana), He protects the Lokas of the Devas and Asuras by His Rays (filled with Tejas)
Eṣa brahmā ca viṣṇuśca śivaḥ skandaḥ prajāpatiḥ
mahendro dhanadaḥ kālo yamaḥ somo hyapāṃ patiḥ || 8
Meaning: He is Brahma, and He is Vishnu; He is Shiva and He is Skanda; He is Prajapati,
He is Mahendra (Indra Deva), He is Dhanada (God of Wealth), He is Kala (God of Time), He is Yama (God of Death), He is Soma (Moon God) and he indeed is the Lord of Water (Varuna Deva),
Pitaro vasavaḥ sādhyā hyaśvinau maruto manuḥ
vāyurvahniḥ prajāprāṇa ṛtukartā prabhākaraḥ || 9
Meaning: He indeed is the ancestor of all, including Vasus, Sadhyas, Ashwins, Maruts and Manu, He is the Wind (Vayu) and the Fire (Vahni) outside, and resides as the Prana of his offsprings inside; He is the creator of different Seasons (Ritus) and fills everything with Splendour,
ādityaḥ savitā sūryaḥ khagaḥ pūṣā gabhastimān
suvarṇasadṛśo bhānurhiraṇyaretā divākaraḥ ||10
Meaning: He is the son of Aditi, Savitha (bright), Soorya (supreme light), Khaga (bird, travels on the sky,), feeds the world by rain, gabhastiman (possessed of rays) Golden colored (beautiful, wise), always shining, he is the creator, the day starts with him).
Haridaśvaḥ sahasrārciḥ saptasaptirmarīcimān
timironmathanaḥ śambhustvaṣṭā mārtāṇḍa aṃśumān || 11
Meaning: Thousands of Light Rays come out of Him like Reddish-Yellow Horses; His Seven Horses (Seven Colours of Light) producing the Light. He removes the Darkness and makes us Joyful; He floats in the Sky like a huge Bird (Martanda), the Bird of Light, the Bird which emits Light
Hiraṇyagarbhaḥ śiśirastapano bhāskaro raviḥ
agnigarbho’diteḥ putraḥ śaṅkhaḥ śiśiranāśanaḥ || 12
Meaning: His Golden Womb (Hiranya Garbha) burns the Dew and making Light (Bhaskara) shines in the sky as the Sun (Ravi). The Womb of Fire (Agni Garbha) of the Son of Aditi sounds His Conch, which awakens us and destroys our Frigidity (Inertness).
Vyomanāthastamobhedī ṛgyajuḥsāmapāragaḥ
ghanavṛṣṭirapāṃ mitro vindhyavīthīplavaṅgamaḥ || 13
Meaning: He is the lord of the space and ruler of the sky, dispeller of darkness, the knower of Rig, Yajur, and Sama (Vedas). He is the cause of Heavy Rains and is the friend of the Water; He crosses the Vindhya mountains by jumps (i.e. moves speedily across the Sky)
Atapī maṇḍalī mṛtyuḥ piṅgalaḥ sarvatāpanaḥ
kavirviśvo mahātejāḥ raktaḥ sarvabhavodbhavaḥ || 14
Meaning: He is a producer of heat, his form is circular, he is like an incarnation of Death (Mrityu), having Reddish Brown color and burning everything within it. He is a Poet who creates the World by supplying energy for activities; His great Fiery Energy, Red in color, gives rise to this entire Worldly Existence
Nakṣatragrahatārāṇāmadhipo viśvabhāvanaḥ
tejasāmapi tejasvī dvādaśātman namo’stu te || 15
Meaning: He is the presiding Deity of Constellations (Nakshatras), Planets (Graha) and Stars (Tara), and conceives the whole Universe in his mind. He has more Energy of Splendour (Tejas) than even the most Energetic; Salutations to You who has twelve Atmans (12 Adityas).
Namaḥ pūrvāya giraye paścimāyādraye namaḥ
jyotirgaṇānāṃ pataye dinādhipataye namaḥ || 16
Meaning: Salutations to him in the Eastern Mountains; Salutations to him in the Western Mountains. Salutations to the Lord of the group of Luminaries (Jyotirgana) and the Lord of the Day.
Jayāya jayabhadrāya haryaśvāya namo namaḥ
namo namaḥ sahasrāṃśo ādityāya namo namaḥ || 17
Meaning: Pray him who has green horses and the bestower of victory, auspiciousness and prosperity. He has thousand rays and who has power to attract all towards him).
Nama ugrāya vīrāya sāraṅgāya namo namaḥ
namaḥ padmaprabodhāya mārtāṇḍāya namo namaḥ || 18
Meaning: Salutations to him who is terrible and fierce one to the sinners, to him who is the hero (controlled senses); one who travels fast, Salutations to the one whose appearance makes the lotus blossom. Salutations to the son of Mrukanda Maharshi).
Brahmeśānācyuteśāya sūryāyādityavarcase
bhāsvate sarvabhakṣāya raudrāya vapuṣe namaḥ || 19
Meaning: Salutations to the Lord of Brahma, Shiva, and Vishnu, Salutations to Surya the sun god, who (by his power and effulgence) is both the illuminator and devourer of all and is of a form that is fierce like Rudra.
Tamoghnāya himaghnāya śatrughnāyāmitātmane
kṛtaghnaghnāya devāya jyotiṣāṃ pataye namaḥ || 20
Meaning: Salutations to the dispeller of darkness, the destroyer of cold, fog and snow, the exterminator of foes; the one whose extent is immeasurable. Salutations also to the annihilator of the ungrateful and to the Lord of all the stellar bodies, who is the first amongst all the lights of the Universe.
Taptacāmīkarābhāya vahnaye viśvakarmaṇe
namastamo’bhinighnāya rucaye lokasākṣiṇe || 21
Meaning: He who has the splendor of Molten Gold, Who is the Fire giving Energy for all the Activities of the World. Salutations to Him Who subdues the Darkness, Who has a Beautiful Splendour, and Who is the witness of the World.
Nāśayatyeṣa vai bhūtaṃ tadeva sṛjati prabhuḥ
pāyatyeṣa tapatyeṣa varṣatyeṣa gabhastibhiḥ || 22
Meaning: He indeed is the Lord Destroying the Beings, and He indeed is the Lord Creating the Beings. He drinks the waters with his rays, heats them up, and sends them down as rain again.
Eṣa supteṣu jāgarti bhūteṣu pariniṣṭhitaḥ
eṣa evāgnihotraṃ ca phalaṃ caivāgnihotriṇām || 23
Meaning: He who abides in the heart of all beings keeping awake when they are asleep. Verily he is the fruit of the Agnihotra which is sought after by the Agnihotrins (Performers of the Agnihotra).
Vedāśca kratavaścaiva kratūnāṃ phalameva ca
yāni kṛtyāni lokeṣu sarva eṣa raviḥ prabhuḥ || 24
Meaning: He indeed is the Vedic Sacrifice, and He indeed is the Fruit of those Sacrifices. Whatever works are to be performed in the World, He, the Ravi (Sun God) is the Lord of all those (Being the Power behind).
Enamāpatsu kṛcchreṣu kāntāreṣu bhayeṣu ca
kīrtayan puruṣaḥ kaścinnāvasīdati rāghava || 25
Meaning: Listen Oh Oh Raghava, scion of the Raghu dynasty, any person, singing the glories of Surya in great difficulties, during affliction, while lost in the wilderness, and when beset with fear, will not come to grief (or loose heart).
Pūjayasvainamekāgro devadevaṃ jagatpatim
etat triguṇitaṃ japtvā yuddheṣu vijayiṣyasi || 26
Meaning: By worshipping Him with one-pointed Devotion, by worshipping that Lord of the Devas Who is the Master of the Universe, by repeating Aditya Hridayam three times, You will be victorious in this Battle (O Rama),
Asmin kṣaṇe mahābāho rāvaṇaṃ tvaṃ vadhiṣyasi
evamuktvā tadāgastyo jagāma ca yathāgatam || 27
Meaning: O mighty-armed one, you shall triumph over Ravana this very moment. Having said thus, sage Agastya then went back in the manner he came
Etacchrutvā mahātejā naṣṭaśoko’bhavattadā
dhārayāmāsa suprīto rāghavaḥ prayatātmavān || 28
Meaning: Hearing Aditya Hridayam, the great warrior Sri Rama became free from all worries. Raghava, of Pious heart, then assumed a delightful appearance.
Adityaṃ prekṣya japtvā tu paraṃ harṣamavāptavān
trirācamya śucirbhūtvā dhanurādāya vīryavān || 29
Meaning: Looking at the Sun with devotion, and reciting Aditya Hridayam, Lord Rama became very Happy. Sipping Water three times and becoming purified, the valiant one, took up his Bow.
Rāvaṇaṃ prekṣya hṛṣṭātmā yuddhāya samupāgamat
sarvayatnena mahatā vadhe tasya dhṛto’bhavat || 30
Meaning: Lord Rama thus cheered, seeing Ravana coming to fight, put forth all his effort with a determination to defeat him.
Atha raviravadannirīkṣya rāmaṃ
muditamanāḥ paramaṃ prahṛṣyamāṇaḥ
niśicarapatisaṃkṣayaṃ viditvā
suragaṇamadhyagato vacastvareti || 31
Meaning: (Then Aditya surrounded with all Gods appears and blesses Rama with great mental and physical strength and ordered to kill Ravana).
आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
- इस स्तोत्र का संपूर्ण लाभ लेने के लिए इस स्तोत्र पर आस्था रखना जरूरी है ।
- इस पाठ को करने से मन का भय दूर होता है और नकारात्मक विचारों से मुक्ति मिलती है।
- यह स्तोत्र का पाठ करने से शत्रु पर विजय की प्राप्ति होती है ,स्वयं श्रीराम ने इस स्तोत्र को सिद्ध किया है।
- यदि कोई वाद विवाद चल रहा हो तो भी आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना लाभकारी होता है, प्रशासनिक अधिकारियों का सहयोग प्राप्त होता है।
- सूर्य को पिता तुल्य माना गया है। आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ करने से पिता-पुत्र के संबंध अच्छे होते हैं।
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