Gulzar Shayari : गुलज़ार साहब को कौन नहीं जानता? गुलजार साहब ने अपने काम से पूरी दुनिया में अपनी अलग छाप छोड़ी है. गुलज़ार ने जिस भी गाने को छुआ उसे हमेशा के लिए अमर कर दिया. गुलज़ार हिंदी कविता का एक अनमोल हीरा हैं। गुलज़ार की हिंदी शायरी के इस ब्लॉग में आप उनकी सदाबहार शायरी के बारे में जानेंगे। गुलज़ार की यह लोकप्रिय हिंदी शायरी आपका मन मोह लेगी। आइये इस ब्लॉग में उनकी कविताओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
आप के बा’द हर घड़ी हम ने आप के साथ ही गुज़ारी है
आइना देख कर तसल्ली हुई हम को इस घर में जानता है कोई
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
शाम से आँख में नमी सी है आज फिर आप की कमी सी है
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर आदत इस की भी आदमी सी है
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
आदतन तुम ने कर दिए वादे आदतन हम ने ए’तिबार किया
जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ उस ने सदियों की जुदाई दी है
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़ किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
अपने साए से चौंक जाते हैं उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था आज की दास्ताँ हमारी है
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है किस की आहट सुनता हूँ वीराने में
एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की
जब भी ये दिल उदास होता है जाने कौन आस-पास होता है
फिर वहीं लौट के जाना होगा यार ने कैसी रिहाई दी है
मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार पीले पत्ते तलाश करती है
सहमा सहमा डरा सा रहता है जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई जैसे एहसाँ उतारता है कोई
ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं दिल ने हर चीज़ पराई दी है
आप ने औरों से कहा सब कुछ हम से भी कुछ कभी कहीं कहते
ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है दर्द दिल का लिबास होता है
चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें
उसी का ईमाँ बदल गया है कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था
देर से गूँजते हैं सन्नाटे जैसे हम को पुकारता है कोई
राख को भी कुरेद कर देखो अभी जलता हो कोई पल शायद
वो उम्र कम कर रहा था मेरी मैं साल अपने बढ़ा रहा था
वो एक दिन एक अजनबी को मिरी कहानी सुना रहा था
आँखों के पोछने से लगा आग का पता यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ
ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा वगर्ना ज़िंदगी भर को रुला दिया होता
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी
रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले
काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता
ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी थी उन की बात सुनी भी हम ने अपनी बात सुनाई भी
गो बरसती नहीं सदा आँखें अब्र तो बारा मास होता है
एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने का
भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में
ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह हो जाता है डाँवा-डोल कभी
ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं ये एक दूजे को दिन भर पकड़ते रहते हैं
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठता नहीं धुआँ
आग में क्या क्या जला है शब भर कितनी ख़ुश-रंग दिखाई दी है
जब दोस्ती होती है तो दोस्ती होती है और दोस्ती में कोई एहसान नहीं होता
नाख़ुदा देख रहा है कि मैं गिर्दाब में हूँ और जो पुल पे खड़े लोग हैं अख़बार से हैं
शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
गुलजार साहब का पूरा नाम क्या है?
संपूर्ण सिंह कालरा (जन्म 18 अगस्त 1934), जिन्हें गुलज़ार के नाम से जाना जाता है, हिंदी फ़िल्मों के प्रसिद्ध गीतकार हैं।